डीयू: ऑनलाइन परीक्षा के निर्णय का बहिष्कार कर रहे है छात्र और शिक्षक
- छात्र और शिक्षक ऑनलाइन परीक्षा नहीं चाहते
- शिक्षकों द्वारा इसे मानमाना निर्णय बताया गया है
दिल्ली विश्वविद्यालय ने 1 जुलाई 2020 से ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने का फैसला लिया है। इस निर्णय का छात्रों और शिक्षको द्वारा सोश्ल मीडिया पर पूर्ण विरोध किया जा रहा है. सभी का कहना है की यह तानाशाही और मनमाना निर्णय है. शिक्षकों का कहना है कि इसे लागू करने से पूर्व शिक्षकों और छात्रों से किसी तरह का विचार विमर्श नहीं किया गया है. और ना ही उनसे इस विषय में कोई राय ली गई है. इसे छात्रों पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है.
डीयू शिक्षक संघ भी हुआ शामिल
अभियान में डीयू शिक्षक संघ समेत डीयू छात्र संघ के प्रतिनिधि एवं विभिन्न छात्र संगठन शामिल हुए है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने सोशल मीडिया पर छात्रों के हितों को लेकर कई पोस्ट किए है. सोशल मीडिया पर भी यह अभियान कुछ दिनो से ट्रेंड कर रहा है. दिल्ली विश्वविद्यालय के एकेडेमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य प्रोफेसर हंसराज ‘सुमन’ का ब्यान सामने आया है. “किसी भी व्यवस्था को लागू करने से पूर्व बिना फीडबैक लिए छात्रों पर जबरदस्ती थोपा जाना शैक्षिक जगत के लिए हानिकारक है”. उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थान में लाखों छात्र ग्रामीण परिवेश से निकल कर आये है. यह लोग सुविधाओं की वजह से नहीं बल्कि अपनी कर्मठता और मेहनत के बल विश्वविद्यालय में प्रवेश लेते है. उनके पास न तो तकनीकी व्यवस्थाएं- स्मार्टफोन, इंटरनेट, लेपटॉप, कम्प्यूटर, वाईफाई इत्यादि जैसी सुविधाये नहीं है.
डीयू में छात्रों की संख्या 9 लाख है
डूसू अध्यक्ष अक्षित दाहिया का कहना है. “डीयू में अभी स्नातक, पीजी व अन्य पाठ्यक्रम के नियमित व स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) और नॉन कॉलेजियट वूमेन एजुकेशन बोर्ड (एनसिवेब) मिलाकर नौ लाख छात्र हैं. इनमें से करीब साढ़े तीन लाख छात्र अंतिम वर्ष के हैं. इनमें से कई छात्र दिल्ली से बाहर के राज्यों के दूरदराज इलाकों में रहते है. इन सभी के पास एक समान इंटरनेट की कनेक्टिविटी संभव नहीं है. ऐसे में अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए सभी प्रकार के विकल्प सेमेस्टर परीक्षा को लेकर तलाशें जाने चाहिए”.
परीक्षा ऑफलाइन हो
प्रोफेसर सुमन का कहना है कि हम ऑन लाइन परीक्षा पद्धति का पूरी तरह से बहिष्कार करते हैं. हमारी सलाह है कि इस पद्धति को तुरंत वापिस लिया जाए. तथा पहले से चली आ रही लिखित परीक्षा पद्धति को ही अपनाया जाए. शैक्षणिक गतिविधियों को पुनः संचालित किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि ऑन लाइन परीक्षा पद्धति को आनन फानन में लागू करने वाले फार्मूले को वापिस लिया जाए. अथवा यह एक नया युग आरम्भ हो जाएगा जो उच्च शिक्षा के लिए घातक सिद्ध होगा.