लॉकडाउन के चलते साफ हुए पर्यावरण को बरकरार रखना चाहती है सीपीसीबी
नदियों, पोखरों व जलाशयों में मूर्ति विसर्जन पर सीपीसीबी ने जारी की संशोधित गाइडलाइन
सीपीसीबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता नहाने, वन्यजीव और मछली पालने लायक पाई गई
कोरोना वायरस संकट के कारण किए गए लॉकडाउन के फायदे भी नजर आने लगे हैं. लॉकडाउन के कारण पर्यावरण पूरी तरह से साफ हो चुका है. यहां तक कि जिस दिल्ली शहर में लोग नीला आसमान देखने के लिए तरस जाते थे, वहां अब ये दृश्य आम बात हो गई है. लॉकडाउन के कारण गंगा और यमुना जैसी नदियां भी प्राकृतिक तौर पर साफ हो गई है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) अब इसे बरकरार रखना चाहता है. यही वजह है कि सीपीसीबी ने नदियों, पोखरों व जलाशयों में विसर्जित की जाने वाली मूर्तियों को लेकर संशोधित गाइडलाइंस जारी कर दी है. सीपीसीबी ने ये गाइडलाइंस 12 मई को जारी की है.

विषैले केमिकल, सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक
सीपीसीबी ने संशोधित गाइडलाइंस में साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि आगामी गणेश चतुर्थी पूजा, दुर्गा पूजा इत्यादि में जो भी मूर्तियां इस्तेमाल की जाएं वो सभी बोर्ड के गाइडलाइंस के अनुरूप हों. बोर्ड के मुताबिक मूर्तियां केवल इको-फ्रेंडली, बायो-डिग्रेडेबल और बिना किसी विषैले केमिकल के इस्तेमाल के बनाई जाएं. प्लास्टर ऑफ पैरिस यानि पीओपी से बनी मूर्तियों को भी प्रतिबंधित करने की भी कही गई है. साथ ही इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंधित करने को कहा गया है.

मूर्तियां सजाने के लिए हो प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल
वहीं, मूर्तियों के गहने बनाने के लिए केवल सूखे फूल, पुआल और मूर्तियों में चमक लाने के लिए पेड़ों के प्राकृतिक रेजिन का उपयोग करना होगा. मूर्तियों के सौंदर्यीकरण के लिए बार-बार और धोने जाने वाले सजावटी कपड़ों का ही इस्तेमाल करने की सीपीबीसी ने हिदायत दी है. जबकि मूर्तियों की रंगाई के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना करने पर जोर दिया गया है.
हाल ही में सीपीसीबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक गंगा नदी के विभिन्न बिन्दुओं पर स्थित 36 निगरानी इकाइयों में करीब 27 बिन्दुओं पर पानी की गुणवत्ता नहाने, वन्यजीव और मछली पालने लायक पाई गई है. इससे पहले, उत्तराखंड और नदी के उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने के कुछ स्थानों को छोड़कर गंगा नदी का पानी बंगाल की खाड़ी में गिरने तक पूरे रास्ते नहाने के लायक नहीं था.
विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास बंद लागू होने से गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार देखा जा रहा है. इसके साथ-साथ हिंडन और यमुना जैसी गंगा की सहायक नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक अभी तक मूर्तियां बनाने में प्रतिबंधित कृत्रिम उत्पादों जहरीले पेंट के इस्तेमाल से विसर्जन के बाद गंगा, यमुना समेत देश की तमाम बड़ी नदियों समेत पोखरों-जलाशयों के प्रदूषण में कई गुना इजाफा दर्ज किया जाता रहा है. नदियों की सफाई पर निगरानी रख रही मॉनिटरिंग कमेटी के मुताबिक अलग-अलग धार्मिक आयोजनों के बाद यमुना में मूर्तियों के विसर्जन से यह समस्या और गंभीर रूप ले लेती है. मूर्तियां बनाने में प्रतिबंधित उत्पादों का धड़ल्ले से उपयोग किया जाता रहा है. क्रोमियम, लोहा, निकल और लेड की मात्रा में कई गुना तक बढ़ोतरी की गई है जिससे बीमारियों का भी खतरा मंडराता रहता है.
लेनी होगी सिविक बॉडीज से पूर्व अनुमति
गणेश महोत्सव, दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियां बनाने से पहले मूर्तिकारों को अनुमति लेनी होगी. सीपीसीबी ने अपने संशोधित गाइडालइंस में स्पष्ट किया है कि बिना सिविक बॉडीज की अनुमति के मूर्ति निर्माता मूर्तियां नहीं बना सकेंगे. कोई भी प्रतिमा या मूर्ति बनाने के लिए मूर्तिकार या मूर्ति निर्माताओं को सिविक बॉडीज के समक्ष अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराना होगा.
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