अब ब्लैक फंगस का डर, डॉक्टर से जानें इसके लक्षण
नई दिल्ली. कोरोना को हराने वालों के लिए जिंदगी की डगर अभी इतनी आसान नहीं है. जो कोरोना संक्रमण को हरा चुके हैं अब उन मरीजों में 14-15 दिनों के अंतराल में ब्लैक फंगस के मामले देखने को मिल रहे हैं. कई मरीज ऐसे भी मिले हैं जो कोरोना पॉजिटिव होते हुए भी ब्लैक फंगस का शिकार हो चुके हैं.
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इस बीमारी का शिकार वो लोग होते हैं जिनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है. इस ब्लैक फंगस को म्यूकोरमाइकोसिस भी कहा जाता है. अबतक इसके सबसे अधिक मामले गुजरात में देखने को मिले हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बीमारी से राज्य में 200 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि इसमें आंखों की रोशनी चली जाती है.
ये हो रहे शिकार
ब्लैक फंगस बीमारी से अधिकतर वो मरीज संक्रमित हो रहे हैं जो कोरोना की जंग को जीत चुके हैं. अगर मरीज किसी अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो उन्हें ब्लैक फंगस होने का खतरा अधिक होता है. इसमें एड्स, कैंसर, किडनी फेलियर या लिवर फेलियर आम है. दरअसल कोरोना संक्रमित मरीजों को स्टीरॉयड दी जाती है. इसके अलावा किडनी और लिवर का इलाज के दौरान भी ऐसी दवाईयां दी जाती हैं जिससे इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है. ऐसे में ब्लैक फंगस होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है.

किसी भी अंग पर कर सकती है वार

सीनियर डॉ. बिजन कुमार डे के मुताबिक ब्लैक फंगस वैसे तो शरीर या चेहरे किसी भी अंग पर अटैक कर सकती है. इसे फैलने से रोकना बहुत मुश्किल होता है. मगर अमूमन मामलों में ये आंखों के पीछे छिप जाती है. ऐसे में मरीज की आंखों में दर्द होता तो कई मामलों में मरीज को भयंकर सिरदर्द की शिकायत रहती है. आम दवाईयों से मरीज की न आंखों का दर्द जाता है और न ही सिरदर्द से छुटकारा मिलता है.

ये हैं आम लक्षण

डॉ. नीलेश तनेजा के मुताबिक इस बीमारी के मरीजों में लक्षण भी अलग अलग देखे गए हैं. इसमें बुखार, मुंह पर सुजन, सिर दर्द, साइनस, नाक बंद, खांसी, उल्टी, दस्त आदि सबसे आम हैं. अगर मरीज कोरोना से हाल ही में ठीक हुए हैं और उन्हें ऐसे लक्षण दिखते हैं तो बिना देर किए उन्हें डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. बिना डॉक्टर की इजाजत के किसी दवाई का उपयोग न करें.
क्या है ये ब्लैक फंगस
अमेरिका के सीडीसी के मुताबिक ब्लैक फंगस एक फंगल इंफेक्शन है जिसके परिणाम बहुत गंभीर होते है. ये मोल्ड्स या फंगी के समूह के कारण मरीज को शिकार बनाता है. ये मोल्ड्स मरीज के शरीर में जीवित रहते हैं. ये साइनस और फेफड़ों पर भी अपना गहरा प्रभाव डालते हैं.
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